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Friday, 16 August 2013

तू जहाँ रहे आबाद रहे, ये गुजारिश है मेरी रब से.....

मन ने एक सवाल किया कुदरत से !
क्या सबकुछ मिलता है यहाँ किस्मत से !!

कुछ लोग हाथों की लकीरे, खुद बनाते है !
तो कुछ राह ए मंजिल,में ही खो जाते है !!

सोचकर मैंने भी, एक ख्वाब संजोया !
पा तो कुछ ना सका, मगर बहुत कुछ खोया !!

उसने मेरी, खुशियों को कुछ यूँ तबाह किया !
मेरे घर का रास्ता, इस गम को बता दिया !!

गम ने मगर, साथ मेरा इस कद्र निभाया !
उसने ही इस तनहा को ''तनहा'' था बनाया !!

मेरी आँखों को दिखला कर, वो ख्वाब तूने तोडा !
जिंदगी रूठ गयी, मुझसे अश्को ने नाता जोड़ा !!

अब गिला शिकवा क्या करूँ, मेरे हमसफ़र मैं तुझसे !
तू जहाँ रहे आबाद रहे, ये गुजारिश है मेरी रब से !!

पी के ''तनहा''

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पी के ''तनहा''