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Saturday 30 April 2011

नया एक लफ्ज़ हो कोई जहाँ से बात चल निकले


कहो अब क्या कहूं तुमसे 
बताओ क्या लिखूं तुमको 
मुझे तहमीद दो कोई 
मुझे उम्मीद दो कोई 
नया एक लफ्ज़ हो कोई 
जहाँ से बात चल निकले 
मेरी मुस्किल का हल निकले 
बताओ लहजा कैसा हो 
की तुमसे बात करनी है 
कहो अब क्या इरादा है 
के तुमको ये बताना है 
की मुझे तुम याद आते हो 
क्यों पी के को इतना सताते हो 

निर्धन के दर्द की दवा

तुमको सुना रहा हूँ एक गाँव की कहानी 
सूरत से आप जैसे इन्सान की कहानी 
बस्ती से थोडा हटके एक झोपडी खड़ी थी 
भादो की रात काली ले मोर्चा अड़ी थी 
सैलाब आ गया था बारिश घनी हुई थी 
हर बार की तरह ये कुछ बात न नई थी 
बच्चा था उम्र १० थी चेचक निकल रही थी 
सोले फफोले टाँके सब देह जल रही थी 
दमड़ी न पास में थी न पास में था जेवर 
कोई उधार क्यों दे इन्सान खुश्क बेजर
माँ बाप दोनों रातों करवट बदल रहे थे 
बच्चे को देख कर आंसू निकल रहे थे 
लो बाप उठ के बैठा कोई सवाल लेकर 
या बेबसी का आलम कोई जमाल लेकर 
सोचा अपने आप को ही कोई सजा दूं 
अब मैं अपने लाल को  क्या दवा दूं 
इन सब से अच्छा है इसका गला दबा दूं 
चेचक से मर गया था यह गाँव में हवा दूं 
बेटे के पास जाकर जैसे गला दबाया 
आवाज़ पर न निकली और कंठ भर के आया 
ममता आ कर बोली कैसा ये बाप है तू 
किस जनम का बैरी है , सांप है तू 
अब तुम ही बताओ यारो किसकी खता बताओ 
सामिल है अहले भगवान, किसको सजा सुनाओ 
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये


Friday 29 April 2011

मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से सह गया बहुत कडवे ठोकर


आ भी जाओ यूं न सताओ 
 बुलाता हूँ  मैं तुमको रो रो कर 
मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से
सह गया बहुत कडवे ठोकर
तुम साथ रहे , मैं जीत गया
पर हार गया तुमको खोकर। 

पहले था मैं जिस घर का मालिक 
आज बना हूँ उसका मैं नोकर
तुमने मुझे कहा था हैण्ड सम  
पर अब मुझको लोग कहते है जोकर 
मैं लड़ा बहुत इस दुनिया से
सह गया बहुत कडवे ठोकर
आ भी जाओ यूं न सताओ 
 बुलाता हूँ  मैं तुमको रो रो कर 
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये

क्या सचमुच ऐसा ही है अगर है तो

नमस्कार दोस्तों ,
कल मैं न्यूज़ में देख रहा था की २१ मई २०११ को दुनिया ख़त्म होने वाली है ,क्या सचमुच ऐसा है. हालाँकि ये सब अंध विस्वास है की संसार  का विनाश हो जायगा 
लेकिन कभी कभी मैं सोचता हूँ की कभी न कभी कुछ न कुछ तो होगा ,क्योंकि मानव प्रजाति ने इतनी प्रगति कर ली है की वो विधाता को कुछ समझ ही नहीं रहा है 
सिर्फ पैसे के लिए ,इस पैसे ने मानव को इतना खुदगर्ज़ बना दिया है की बस पूछिए मत ........
पैसे की अंधी भूख ने मनुष्य ने समस्त जीव प्रजाति का लगभग विनाश कर डाला ,और कर रहा है ,जमीने खोखली कर दी है ,हवा को भी शुद्ध नहीं छोड़ा ,आदमी आदमी को गज़र मूली की तरह काट रहा है प्रक्रति से छेड़छाड़ कर रहा मनुष्य उस संसार रचने वाले को भूल बैठा है ,लेकिन ये उसकी भूल है, एक दिन उस पर ऐसा कहर टूटेगा की वो खुदपर न तो हंस पायगा न ही  रो पायगा,क्या सचमुच ऐसा ही है अगर है तो  .......................
देखते है २१ मई २०११ को क्या होता है .......
अगर जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे  तब तक के लिए आप सब को हमारा हाथ जोड़ कर नमस्कार ,
नोट -:कृपया इसे किसी और तरह  से न ले I
इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये।

Thursday 28 April 2011

कहना मैंने याद किया है।


अगर छाँव में धूप मिले, तो कहना मैंने याद किया है।
वही कोकिली कूक मिले, तो कहना मैंने याद किया है॥
शब्द-शब्द मूरत गढ़ करके,
जिसके गीतों को सुन करके।
दिल में नई तरंगें उठती ,
ऐसी कोई पंक्ति मिले ,तो कहना मैंने याद किया है ॥
देहरी तक आ करके ठिठकी ,
क्यों करके आती है हिचकी ।
जिसने मुझको याद किया हो
ऐसा कोई मीत मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
चांदी में घोला हो सोना,
कुछ चंचल हो कुछ अलसौना ।
लज्जा कुंदन भी फीका हो
नैना जैसे सीप मिले, तो कहना मैंने याद किया है ॥
जैसे-जैसे घूँघट सरके ,
त्यों -त्यों कितने दर्पण दरके ।
जिसकी पलकें ही घूँघट हों
ऐसा कोई रूप मिले,तो कहना मैंने याद किया है ॥

Tuesday 26 April 2011

Happy Mother,s Day

माँ तब तुम्हारी याद आई 
सुबह सवेरे आँख खुली 
और तेरी सूरत नज़र न आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
सांझ ढले जब घर लोटा 
और तू घर पर नज़र न आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
दुनिया भर की धुप लगी 
और तेरी आँचल छाव न पाई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 
चौखट पर जब मेरे घर की 
तेज जब भी हवा आई 
माँ तब तुम्हारी याद आई 

Saturday 16 April 2011

मेरा कफ़न

जाने क्यों उदास और तनहा है मेरा कफ़न
शायद मेरे इंतज़ार में है मेरा कफ़न
तुजसे ज्यादा वफ़ा निभा रहा है मुझसे 
मेरे साथ चिता में जल रहा है मेरा कफ़न
खूब लग रहा है सफेदी में सुर्ख रंग 
देख तेरी हिना से जगमगा रहा है मेरा कफ़न
नज़र न लग जाये मेरी लाश को किसी बेवफा की 
तुझ से  मेरा चेहरा छुपा रहा है मेरा कफ़न 
हर निशानी मेरे वजूद की मेरे साथ जल जायगी आज
मेरा आखिरी निशान भी मिटा रहा है मेरा कफ़न
शायद कभी तुजसे मुलाकात हो की ना हो
तुजसे बहुत दूर मुझे ले जा रहा है मेरा कफ़न

क्या होता अगर हंसा देता कोई

दुआ नहीं तो गिला देता कोई ,मेरी मेहनत का सिला देता कोई
जब मुक्कदर ही नहीं था अपना , देता भी तो भला क्या देता कोई
तक़दीर नहीं थी अगर आसमान छूना ,खाक में ही मिला देता कोई
गुमान ही हो जाता किसी अपने का , दामन ही पकड़ कर हिला जाता कोई
अरसे से अटका है हिचकियो पे ,अच्छा होता जो भुला देता कोई
ये तो रो रो के कट गयी जिंदगी अपनी ,क्या होता अगर हंसा देता कोई  

वक्त के कारवां से आगे हूँ .

वक्त के कारवां से आगे हूँ .
बेरहम आसमा से आगे हूँ
हूँ कहाँ ये तो खुदा जाने .....
पर जहाँ कल था 
वहां से आज आगे हूँ  

Tuesday 12 April 2011

बस लिख रहे हैं प्यार तुम्हे

 बहुत दिन से कुछ लिख नहीं पाए....उसके लिए माफ़ी चाहते  है
एक शेर आपके  समक्ष.....
हैं दूर बहुत मजबूर बहुत
क्या भेंट करे उपहार तुम्हे
स्वीकार इसी को कर लेना
बस लिख रहे हैं प्यार तुम्हे

Friday 1 April 2011

हम भी हैं भाई ब्लोगर,

                                         हम तो कुछ थे नहीं , बस सब आप का ही साथ है