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Sunday 25 September 2016

ख्वाहिशे ......

ख्वाहिशे
कुछ बड़ी हो गयी है अब
जो देने लगी है
स्थान, खुद से पहले
मेरी जरूरतों को
अब नही आती
वक़्त - बेवक़्त
मेरी पलको पे
कोई ख्वाब लेकर
क्योंकि
मालूम है उनको
कि पलको पे
आज भी
जाने कितने ख्वाब
संजोए बैठे है
खुद के पूरा होने की
ख्वाहिश लिए
गलत कहती है
ये दुनिया
कि ख्वाब सच होते है
जबकि सच ये है
कि जो सच हो जाये
वो ख्वाब नही होते
इन बेचारे ख्वाबो को
मंजिल कहाँ मिलती है
असल ज़िन्दगी तो
आज भी
जरूरतों से ही चलती है। .......


पी के ''तनहा''

Tuesday 13 September 2016

हाँ ..... आदत सी हो गयी है आजकल

आदत सी हो गयी है
आजकल
हँसते हँसते रोने की
बिन ख्वाबो के सोने की
हाँ  .....
आदत सी हो गयी है
आजकल
गम को छुपाने की
खुद पे हंसने की
सबको हंसाने की
यूँ ही खुद से बतियाते
खुद से रूठ जाने की
हाँ  .....
आदत सी हो गयी है
आजकल
घुट घुट के जीने की
गम के आंसू पीने की
वक़्त के लड़कर
ज़ख्मो को सीने की
हाँ  .....
आदत सी हो गयी है
आजकल



पी के तनहा 

Sunday 4 September 2016

सोचता हूँ, एक प्यारा सा ख्वाब हो जाऊ मैं .......

सोचता हूँ, एक प्यारा सा ख्वाब हो जाऊ मैं !
तेरे हर सवाल का, जवाब हो जाऊ मैं !!
दूर तलक चर्चे है तेरे, और तेरे शहर के !
सोचता हूँ, तेरे शहर का नवाब हो जाऊ मैं !!

पी के तनहा