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Monday 13 January 2014

तेरी यादो का, शुक्रियादा कैसे करूँ ,बड़ा साथ देती है ये मेरा, मुझे रुलाने में ..


तुझसे ही वजूद है मेरा, इस जमाने में !
कभी चुपके से आओ मेरे आशियाने में !!

मैं इंतज़ार करता हूँ तेरा, हर पल, हर घडी !
शायद तुम्हे मजा आता है, यूँ सताने में !!

ये इमारती खुसबू, फीकी पड़ जाएँगी तुम्हारी !
दो वक़्त गर बिताओ, मेरे गरीबखाने में !!

मैं, तेरी यादो का, शुक्रिया अदा कैसे करूँ !
बड़ा साथ देती है ये मेरा, मुझे रुलाने में !!

इन अश्क़ो का क्या है, निकल आते है कहीं भी !
और ही मजा है लेकिन, तेरे लिए अश्क़ बहाने में !!

वो गुजरे पल संजो कर रखे है, मैंने आज भी !
जिनका योगदान रहा था, कभी मुझको हसाने में !!

पी के ''तनहा''
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।



Wednesday 8 January 2014

ख्वाबो को तोड़ने की, अब कोई साजिश नही होती ....

मेरी आँखों को, अब किसी चीज़ की ख्वाहिश नही होती !
यही कारण है शायद, अब अश्क़ो की बारिश नही होती !!
यूँ तो विरासत में मिले है मुझको, टूटे हुए कुछ सपने !
शुक्र है, ख्वाबो को तोड़ने की, अब कोई साजिश नही होती !!

लेखक :पी के ''तनहा''
मौलिक व् अप्रकाशित 

Monday 6 January 2014

इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है...

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!
जीता नही कभी मैं, जीवन के इस सफ़र में !
गर तुम भी ना मिले तो, एक और मेरी ''हार'' है !!

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!

माना इस सफ़र में, रुसवाईयाँ है लेकिन !
मदमस्त महफ़िलो में, तन्हाईयाँ है लेकिन !!
मालूम है ये मुझको, बस गम ही गम मिलेंगे !
तेरे लिए ''ए प्रियतम'', हर गम मुझे स्वीकार है !!

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!

पी के ''तनहा''