वक़्त को मैंने, मजबूर होते देखा !
अपनों को अपनों से दूर होते देखा !!
जिनका नाता नही था, ख्वाबो से कभी !
उन्ही को ख्वाबो में, चूर होते देखा !!
आँख जिनसे, मिलाने से डरते थे कभी !
उन्ही को आँखों में डूबता देखा !!
और जो हँसते थे, कभी इश्क की बातो पर !
उन्ही पर , मोह्हबत का सुरूर देखा !!
अजनबी बनके आया थे, तेरे शहर में !
अपने आप, को मैंने मशहुर होते देखा !!
पी के ''तनहा''
अपनों को अपनों से दूर होते देखा !!
जिनका नाता नही था, ख्वाबो से कभी !
उन्ही को ख्वाबो में, चूर होते देखा !!
आँख जिनसे, मिलाने से डरते थे कभी !
उन्ही को आँखों में डूबता देखा !!
और जो हँसते थे, कभी इश्क की बातो पर !
उन्ही पर , मोह्हबत का सुरूर देखा !!
अजनबी बनके आया थे, तेरे शहर में !
अपने आप, को मैंने मशहुर होते देखा !!
पी के ''तनहा''
सुन्दर रचना
ReplyDeleteवाह सुन्दर रचना ....
ReplyDeleteThanks a lot yashoda ji and gupta ji
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