आज सिसकते हुए, एक कहानी लिखी !
पीड अपनी थी, अपनी जुबानी लिखी !!
उसकी यादों के सिवा, था ना कुछ भी बचा !
मैंने फिर भी, वो उसकी निशानी लिखी !!
घूंट अश्क़ो का मैं भी, अब पीने लगा हूँ !
गम के आशियाने में, अब यूँ जीने लगा हूँ !!
कुछ यादें जो उसकी, आयी आज लौटकर !
मैंने दास्ताँ वो उसकी, फिर पुरानी लिखी !!
पी के ''तनहा''
पीड अपनी थी, अपनी जुबानी लिखी !!
उसकी यादों के सिवा, था ना कुछ भी बचा !
मैंने फिर भी, वो उसकी निशानी लिखी !!
घूंट अश्क़ो का मैं भी, अब पीने लगा हूँ !
गम के आशियाने में, अब यूँ जीने लगा हूँ !!
कुछ यादें जो उसकी, आयी आज लौटकर !
मैंने दास्ताँ वो उसकी, फिर पुरानी लिखी !!
पी के ''तनहा''
बहुत भावपूर्ण और सुन्दर...
ReplyDeleteThanks You Kailash Ji
Deletethnks
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