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Tuesday, 2 September 2014

जमाने में गर, ये इबादत ना होती.............

ये इश्क़ भी ना होता, ये मोह्हबत ना होती !
इस जमाने में गर, ये इबादत ना होती !!

ना होते ये नग्मे, ना ग़ज़ल यूँ ये होती !
गर जीवन में ''गम ए उदासी'' ना होती !!

 ना होती ये, खुशियां, ना सुबह मस्त होती !
गर जुदाई में, हर शाम यूँ ''तनहा'' ना होती !!

ना हँसता कोई चेहरा, ना हसीं पास होती !
गर ज़िंदगी हमारी, ना यूँ खास होती !!

ना ख्वाब कोई होता, ना ख्वाहिश कोई होती !
आँखों से गर ये, अश्क़ो की बारिश ना होती !!

पी के ''तनहा''

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पी के ''तनहा''