Pages

Sunday 25 September 2016

ख्वाहिशे ......

ख्वाहिशे
कुछ बड़ी हो गयी है अब
जो देने लगी है
स्थान, खुद से पहले
मेरी जरूरतों को
अब नही आती
वक़्त - बेवक़्त
मेरी पलको पे
कोई ख्वाब लेकर
क्योंकि
मालूम है उनको
कि पलको पे
आज भी
जाने कितने ख्वाब
संजोए बैठे है
खुद के पूरा होने की
ख्वाहिश लिए
गलत कहती है
ये दुनिया
कि ख्वाब सच होते है
जबकि सच ये है
कि जो सच हो जाये
वो ख्वाब नही होते
इन बेचारे ख्वाबो को
मंजिल कहाँ मिलती है
असल ज़िन्दगी तो
आज भी
जरूरतों से ही चलती है। .......


पी के ''तनहा''

No comments:

Post a Comment

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''