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Tuesday 22 March 2011

यादें आती रही मगर बंद मैखाना हुआ

तुझसे मिले एक ज़माना हुआ 
मैखाने जाने का बहाना हुआ
जाम जब साकी ने पिलाया अपने हाथो से 
एक मुद्दत बाद मेरा होश में आना हुआ
शीशे में देखा एक अजनबी था सामने 
तेरे इश्क में कैसा मैं खुद से बेगाना हुआ
ज़िक्र फिर तेरा आया, जब चला दौर ए जाम 
लूटना फिर सुरु मेरे अश्कों का खज़ाना हुआ
सोचा तेरे याद को पि जाऊं जाम में घोल कर 
यादें आती रही मगर बंद मैखाना हुआ  

Saturday 19 March 2011

लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ....

लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा.... 
जिंदगी ने जिन हालात में मुझे उस मोड़ पे छोड़ा था 
जहाँ मेरे बैशाखी ने भी मुझसे नाता तोडा था
ऐसे ही कई मोड़ पर मेरे सपनो ने मुझे छोड़ा था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ....
जिंदगी के फैसले में हमने ये न सोचा था
खुबसूरत ख्वाब ने हमे दिया किस तरह धोखा था
बहार से तो अति सुन्दर मगर अन्दर से वो खोखा था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा ......
कर गया बर्बाद मुझको जो सपना मेने देखा था
ऐसा भी कभी होगा एक दिन न मैंने कभी ये सोचा था
की ऐसे ही एक दिन मैं हारकर भी जीता था
ये होली ही ऐसी आई है की मैं खुस हूँ बहुत 
वरना गम भुलाने को मैं हर होली को पीता था
लिखना तो नहीं आता पर लिख कर देखा थोडा सा .... 
 

अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले

आइना देख के बोले ये सवरने वाले 
अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले
न जाने महफ़िल में कितने ही आये मेरे मिलने वाले
कई उनमे दिलवाले थे तो कई थे उनमे मतवाले 
सामने बोले ये मेरे बोलने वाले
की अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले.....
ये तेरा ही था जादू या था कुदरत का करिश्मा 
जिसने भी तुझे देखा उन सबको पड़े जान के लाले 
उन सभी को देख बह निकले मेरे भी अश्को के नाले 
मेरे अश्को को देख सामने आ ही गए मेरे सामने वाले
और कहने लगे की अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले   
आइना देख के बोले ये सवरने वाले 
अब तो बेमौत मरेंगे मेरे मरने वाले

Thursday 17 March 2011

जब से तुम बिछुडे।

जब से तुम बिछुडे।
तेरे मेरे मिलने का वो साल पुराना बीत गया।
जबसे तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया॥

एक नदी थी, एक था पीपल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
लहरों से छैंया तक का वो दौड़ लगाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

एक थी बरखा, एक था बादल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
सावन की छम छम बूंदों में धूम मचाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

एक हवा थी, एक था जंगल;
एक घना था, एक थी निर्मल।
पंख पसारे पत्तों के संग उड़ उड़ जाना बीत गया॥
जब से तुम बिछुडे हो प्रीतम, एक ज़माना बीत गया...

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,

अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना ,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना ।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन ,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत ,
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना ।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं ,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना ।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना ,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना ।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी ,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना ।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम ,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना ।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने ,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ‘ दीप ‘ को जला कर रखना

Tuesday 15 March 2011

पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,

पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
पहेले तो मक्की की रोटी खाते थे बड़े चाव से
अब नहीं मिलती वो किसी तो भी भाव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
कितने कोवे परेशान करते अपनी कांव कांव से,
अब नहीं आते वो किसी नीम की भी छाँव से,
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
अब अपनी भी क्या कहें ...........भइया
हम सब भी तो आ गए अपने अपने गाँव से..
तभी तो माँ कहती है की .........
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,
....................................................................
पीपल बाबा नदी किनारे पूछे अपनी छाँव से
पंछी क्यों परदेसी हो गए अब अपने ही गाँव से,

कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।

कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की,
सरे बाज़ार किमत लगेगी मेरे हालात की,
बाँध खड़ा किया जाएगा मुझे चौराहे पर,
सबकी निगाहें होंगी मेरे निगाहों पर,
सावन में पूछ क्या हो आसुओ की बरसात की,
कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।
.
इन्सानो ने बनने दिया इन्सान तो क्या,
खुद अपने हीं घर में बन गए मेहमान तो क्या,
दिल में दर्द और होठों पर मुस्कान नहीं,
खुद पर शर्मींदा हूँ औरो से परेशान नहीं,
मुझे समझ हीं ना थी दुनिया के इस खुराफ़ात की,
कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की ।

दीपक से उजाला करते है घर जलाए नही जाते

दीपक से उजाला करते है घर जलाए नही जाते
पुराने रिश्तों को तोड़ कर नए बनाए नही जाते
और झूट की बुनियाद के महल होते है रेत के
दुसरो के घर बसाए नही जाते अपना घर बेच के ।
.
छोटे छोटे बातों पर आंगन बाँट नहीं दिए जाते,
जिन पेड़ो पर फल ना हो काट तो नहीं दिए जाते,
दोस्ती तुम तुफान से भी कर लो मगर,
रास्ते घर के बताए नहीं जाते ।
.
कुछ ज़ख्म ऐसे है जो शौक से ढोए जा रहे हैं,
तोड़ कर दिल अपना दुसरों के सपने सँजोए जा रहे हैं,
कुछ राज़ ऐसे भी है जो सिर्फ एक से हैं बताए जाते,
पर उन्हें भी वो ज़ख्म दिखाए नहीं जाते

सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है ।

पानी के कुछ बुलबुलों में दुनिया जहान को डूबते देखा है,
सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है,
गूँज वही है पर साज़ नए हैं,
आँसू वही हैं पर बहने के अंदाज नए है,
कितने अनजाने आए और मित्र बन गए,
और कुचले हुए गुलाब भी ईत्र बन गए,
पर आने वाले वक्त को किसने देखा है,
सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है ।
जिन सवालों को लेकर चले थे,
जब उनके जवाब हीं बेमाने हो गए,
तो खुद ब खुद बंद होने लगीं खिड़कियाँ,
लोग कितने सयाने हो गए,
दिल हो गए पत्थर के जब से,
मैने खुद को दीवारों से बातें करते देखा है,
सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है ।
ना वैसे कभी चली थी ,ना वैसे कभी चलेगी,
जैसा हम दुनाया के बारे में सोचते है,
फिर क्यों कभी खुद को कभी दुनिया को कोसते है,
अगर मीरा जैसे बनेंगे दीवाने ,
फिर लोग तो मारेंगे हीं ताने,
पर वक्त ने उसी दुनिया को उसके पैरों पर गिरते देखा है,
सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है ।

मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी ।

मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी,
कुछ अधुरे सपने ,मेरी मुश्किलें ,मेरी कठनाई थी,
मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी ।

मेरे भावनाओं से खेला मेरे ऊसुलों का दाम लगा के,
बेबसी हँस रही थी मुझ पर कायरता का इल्जाम लगा के,
चुप था मैं पर लड़ रही सबसे मेरी परछाई थी,
मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी ।

समय ने कर के तीमिर से मंत्रणा,हर ज्योति को बुझा दिया,
स्वाभीमान के कर के टुकड़े-टुकड़े मझे घूटनों में ला दिया,
हर तरफ़ से मिल रही बस जग हँसाई थी,
मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी ।

जब देखा स्वयं को आईने में ,मैं टूट चूका था हर मायने में,
स्थिल कर रहा सोंच को ये बिन आग का कैसा धुआँ है,
ध्यान से देखा ,ओह ये आइना टूटा हुआ है,
और यही सोंच बन के जीत लेने लगी अँगड़ाई थी,
मैं अकेला कब था ,मैं था और मेरी तनहाई थी ।

ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है

ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
कि दर्द हीं दिल का दवा बन गया है ,
सपने बिखर रहे बन के रेत हाथों से ,
जो बचा था , कुछ धुंवा कुछ हवा बन गया है |

मंजीलें थीं मेरी तेरे आस पास ,
पर जिस पे साथ चलते थे वो रासता किधर गया ,
जो ना डरता था ज़माने में किसी से,
आज ख़ुद क्यों अपने आप से डर गया |

क्यों ये जानना ज़रूरी था की कौन सही , कौन ग़लत है,
अब दूर होकर क्यों पास आने की तलब है,
फ़िर से पुरानीं गलतियों को दोहराने को जी चाहता है ,
बदले की आरजू है या प्यार की कशीश है |

तुम हीं रुक जाओ की वक्त तो रुकता नहीं ,
क्यों ये पर्वत तो कभी झुकता नहीं ,
मेघ बनके बरस जाओ तुम मुझ पर ,
की ओस की बूंदों से प्यास बुझता नहीं |

तूफ़ान है तूझमें मुझे टूटने बीखर जाने दो ,
इससे अच्छा और क्या मिल सकता सिला है ,
ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
की दर्द हीं दिल का दवा बन गया है |

हैप्पी होली

बहुत दिनों से कुछ पोस्टिंग नहीं किया है अभी थोडा व्यस्त  चल रहे हैं,
खेर आप सबी को हमारी तरफ से होली की हार्दिक शुभ कामनाए, हैप्पी होली