Pages

Saturday 1 November 2014

माँ..........

हमारे कल के लिए, अपना आज मिटा देती है !
वो माँ ही है, जो हमे, बस दुआ और दुआ देती है !!

पी के ''तनहा''

Tuesday 2 September 2014

जमाने में गर, ये इबादत ना होती.............

ये इश्क़ भी ना होता, ये मोह्हबत ना होती !
इस जमाने में गर, ये इबादत ना होती !!

ना होते ये नग्मे, ना ग़ज़ल यूँ ये होती !
गर जीवन में ''गम ए उदासी'' ना होती !!

 ना होती ये, खुशियां, ना सुबह मस्त होती !
गर जुदाई में, हर शाम यूँ ''तनहा'' ना होती !!

ना हँसता कोई चेहरा, ना हसीं पास होती !
गर ज़िंदगी हमारी, ना यूँ खास होती !!

ना ख्वाब कोई होता, ना ख्वाहिश कोई होती !
आँखों से गर ये, अश्क़ो की बारिश ना होती !!

पी के ''तनहा''

Saturday 31 May 2014

मैंने हर इबादत में मगर, तुझको खुदा माना है

जुस्तजू नही, कि तुझको भी हो मोह्हब्त मुझसे !
मैंने हर इबादत में मगर, तुझको खुदा माना है !!

पी के ''तनहा''

Thursday 29 May 2014

निकाल दो बेशक, मुझको दिल से अपने........

मेरे हिस्से में है दर्द जितने, आज सहने दो !
मत रोको, ''अश्क़ ए दरिया'' को आज बहने दो !!
तुम निकाल दो बेशक, मुझको दिल से अपने !
इतना कर दो मगर, अपनी दुआओ में रहने दो !!

पी के ''तनहा''

Tuesday 22 April 2014

मैं बहते पानी की तरह हो गया हूँ , साहेब ......

मोम की माफिक हूँ, पल भर में पिघल जाऊंगा !
जरा भी आग लगी दिल में, तो जल जाऊंगा !!
मैं बहते पानी की तरह हो गया हूँ , साहेब !
जिस भी आकार में ढ़ालोगे मुझको, ढल जाऊंगा !!

पी के ''तनहा''

Saturday 5 April 2014

कविता .....

कविता ! अपने अंतर की चेतना और अनुभूति की अभिव्यक्ति भर है कविता |

दिन में रात में, ख़ुशी में गम में, आशा में निराशा में, हार में जीत में, प्रीत में रीत में, जय में पराजय में, यश में अपयश में, वैभव में पराभव में, अपमान में सम्मान में, ख़ामोशी में जुनून में, बेचैनी में सुकून में, उम्मीद में ना उम्मीदी में, अपेक्षा में उपेक्षा में, होने में ना होने में, पाने में खो देने में, उदासी में उपहासी में |

ह्रदय में भावनाएँ किसी भी अवस्था में पनपती है | समय के किसी भी क्षण ह्रदय में उठता भावनाओं का ज्वार जब कागज पर आकर ठहर जाता है तो कविता बन जाती है |

पी के ''तनहा''

Friday 4 April 2014

इन आँखों ने, तेरा दीदार पाकर अच्छा नही किया

दफ़न कर चूका था जबकि, तेरे एहसासो को कबका !
इन आँखों ने, तेरा दीदार पाकर अच्छा नही किया !!

पी के ''तनहा''

Saturday 29 March 2014

आज सिसकते हुए, एक कहानी लिखी.......

आज सिसकते हुए, एक कहानी लिखी !
पीड अपनी थी, अपनी जुबानी लिखी !!

उसकी यादों के सिवा, था ना कुछ भी बचा !
मैंने फिर भी, वो उसकी निशानी लिखी !!

घूंट अश्क़ो का मैं भी, अब पीने लगा हूँ !
गम के आशियाने में, अब यूँ जीने लगा हूँ !!

कुछ यादें जो उसकी, आयी आज लौटकर !
मैंने दास्ताँ वो उसकी, फिर पुरानी लिखी !!


पी के ''तनहा''

Tuesday 25 February 2014

तेरी यादें, मेरे नगमो में रंग भरती है.........

कभी बस जाती है, दिल में मेरे !
कभी मुझको उदास करती है !!
तेरी यादें, जो मुझसे बात करती है !
तुझको, बस तुझ ही को याद करती है !!

इसी कश्मकश में, बिखर जाता हूँ मैं !
आती है तेरी याद, संवर जाता हूँ मैं !!
मैं जब जब होता हूँ, ''तनहा '' कभी !
आकर मेरी तन्हाई, दूर करती है !!

कभी बस जाती है, दिल में मेरे !
कभी मुझको उदास करती है !!

साथ जब जब तेरी यादो का ना पाते है !
मेरे शब्द भी, बेअसर से हो जाते है !!
तेरी यादों में डूब कर, मैंने लिखा है जब भी !
तेरी यादें, मेरे नगमो में रंग भरती है !!

कभी बस जाती है, दिल में मेरे !
कभी मुझको उदास करती है !!


 पी के ''तनहा''

Thursday 20 February 2014

क्या पता था, ये हसरत, फिर से उमड़ यूँ आएगी ....

मेरे बाद ये ख़ामोशी, तुमको मेरे गीत सुनाएगी !
मेरे शब्दो की गहराई , फिर तुमको रुलाएगी !!

लाख भुलाना चाहोगे तुम, अपने दिल से मुझको !
रह- रह कर मगर तुमको, मेरी याद आएगी !!

मैं ख्वाहिशो को, दफना कर निकला था घर से !
क्या पता था, ये हसरत, फिर से उमड़ यूँ आएगी !!

तुम आये थे ज़िंदगी में, बड़ी हसीन थी ज़िंदगी !
हमको खबर नही थी, कि इसे यूँ नजर लग जायेगी !!

आना- जाना लगा रहता है, दुनिया के इस मेले में !
अपनी दुनिया का भी क्या है, चंद दिनों में सिमट जायेगी !!


पी के ''तनहा''

Wednesday 19 February 2014

मोहब्बत का हश्र, आज हमने भी देख लिया .....

साथ तुझको ना पाकर, हम बहुत रोये !
तुझसे दिल को लगाकर, हम बहुत रोये !!

सामने तेरे ये लब, खामोश रहे लेकिन !
घर अपने जाकर के , हम बहुत रोये !!

बिन तेरे, तन्हाई में, मर मर के जीये हम !
आज खुद को जिन्दा देखकर, हम बहुत रोये !!

मालूम था, छोड़ के जाओगे तुम मुझको !
नजरे बचा कर, तुमसे हम बहुत रोये !!

मोहब्बत का हश्र, आज हमने भी देख लिया !
तुझको खुदा बनाकर, हम बहुत रोये !!



पी के ''तनहा''

दो पल ठहर भी जाओ, ज़िंदगी में मेरी......

किसी शाम फिर से आओ, ज़िंदगी में मेरी !
कि आकर, फिर ना जाओ ज़िंदगी से मेरी !!
कह दो वक़्त से, किसी रोज़ ''मेरे हमसफ़र'' !
कि दो पल ठहर भी जाओ, ज़िंदगी में मेरी !!

मैं ''तनहा'' सा हो गया हूँ, बिन तेरे ए ज़िंदगी !
कभी यूँ कर, कि आकर मिल मुझसे ज़िंदगी !!
पल पल रुलाया तूने, मगर कुछ ना कहा मैंने !
ना कोई शिकवा, ना शिकायत है, तुझसे ज़िंदगी !!

पी के ''तनहा''

Monday 13 January 2014

तेरी यादो का, शुक्रियादा कैसे करूँ ,बड़ा साथ देती है ये मेरा, मुझे रुलाने में ..


तुझसे ही वजूद है मेरा, इस जमाने में !
कभी चुपके से आओ मेरे आशियाने में !!

मैं इंतज़ार करता हूँ तेरा, हर पल, हर घडी !
शायद तुम्हे मजा आता है, यूँ सताने में !!

ये इमारती खुसबू, फीकी पड़ जाएँगी तुम्हारी !
दो वक़्त गर बिताओ, मेरे गरीबखाने में !!

मैं, तेरी यादो का, शुक्रिया अदा कैसे करूँ !
बड़ा साथ देती है ये मेरा, मुझे रुलाने में !!

इन अश्क़ो का क्या है, निकल आते है कहीं भी !
और ही मजा है लेकिन, तेरे लिए अश्क़ बहाने में !!

वो गुजरे पल संजो कर रखे है, मैंने आज भी !
जिनका योगदान रहा था, कभी मुझको हसाने में !!

पी के ''तनहा''
मौलिक एवं अप्रकाशित रचना।



Wednesday 8 January 2014

ख्वाबो को तोड़ने की, अब कोई साजिश नही होती ....

मेरी आँखों को, अब किसी चीज़ की ख्वाहिश नही होती !
यही कारण है शायद, अब अश्क़ो की बारिश नही होती !!
यूँ तो विरासत में मिले है मुझको, टूटे हुए कुछ सपने !
शुक्र है, ख्वाबो को तोड़ने की, अब कोई साजिश नही होती !!

लेखक :पी के ''तनहा''
मौलिक व् अप्रकाशित 

Monday 6 January 2014

इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है...

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!
जीता नही कभी मैं, जीवन के इस सफ़र में !
गर तुम भी ना मिले तो, एक और मेरी ''हार'' है !!

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!

माना इस सफ़र में, रुसवाईयाँ है लेकिन !
मदमस्त महफ़िलो में, तन्हाईयाँ है लेकिन !!
मालूम है ये मुझको, बस गम ही गम मिलेंगे !
तेरे लिए ''ए प्रियतम'', हर गम मुझे स्वीकार है !!

एक बार कह दो, कि तुमको मुझसे प्यार है !
मेरी इस ग़ज़ल को बस, तुम्हारा इंतज़ार है !!

पी के ''तनहा''