यूं ही चला आ रहा हूँ कबसे जिंदगी को जीतता हारता, तलाश है मंजिल की डगर की ,तलाश है मेरे हमसफ़र की ....
Friday, 29 March 2013
Friday, 22 March 2013
Friday, 15 March 2013
ज़ख्म कितने पुराने थे,...........
यादों के दर्मिंयाँ, कुछ अनछुए ख्वाब रह गये !
ज़ख्म कितने पुराने थे, हम फिर भी सह गये !!
और आज, खोला जो अतीत का एक पन्ना हमने !
मेरी आँखों से ये मोती, फिर अनायस ही बह गये !!
पी के ''तनहा''
ज़ख्म कितने पुराने थे, हम फिर भी सह गये !!
और आज, खोला जो अतीत का एक पन्ना हमने !
मेरी आँखों से ये मोती, फिर अनायस ही बह गये !!
पी के ''तनहा''
Monday, 4 March 2013
वो अजनबी जब भी मेरे सपनों में आया है...
वो अजनबी जब भी मेरे सपनों में आया है !
मेरी पलकों ने , एक हसीं ख्वाब सजाया है !!
और देखकर सादगी भरा , लिबास उसका !
उस शख्स पर मुझको, और प्यार आया है !!
यूं तो देखा नहीं उसने, कभी प्यार से मुझको !
मगर उसकी आँखों ने, मुझे कई बार बुलाया है !!
अब जो भी हो, नहीं डरता मैं अब जमाने से !
वो ही मेरा हमसफ़र ,वो ही मेरा हमसाया है !!
पी के ''तनहा''
मेरी पलकों ने , एक हसीं ख्वाब सजाया है !!
और देखकर सादगी भरा , लिबास उसका !
उस शख्स पर मुझको, और प्यार आया है !!
यूं तो देखा नहीं उसने, कभी प्यार से मुझको !
मगर उसकी आँखों ने, मुझे कई बार बुलाया है !!
अब जो भी हो, नहीं डरता मैं अब जमाने से !
वो ही मेरा हमसफ़र ,वो ही मेरा हमसाया है !!
पी के ''तनहा''
जिंदगी कैसे जी जाती है ....
जिंदगी लम्हा बनकर , अक्सर मेरे पास आती है !
कुछ अपनी कहती है,और कुछ मेरी सुनकर , मुझसे बतियाती है !!
मैं पूछ बैठता हूँ , उससे की, क्यों हो तुम ऐसी .....
मेरे इस सवाल से , वो सोच में पड़ जाती है !!
और बहुत सोचने के बाद , मुझसे कहती है !
की आओ तुम्हे बताती हूँ , की जिंदगी कैसे जी जाती है !!
और फिर अतीत की कोठरी में ले जाकर ....
मेरे बीते पलो को याद दिलाती है !!
इन सबको क्यों भूल जाता है इन्सान ...
ये कह कह कर मुझे रुलाती है !
तब समझ आया , की जिंदगी पल पल क्यों आजमाती है !
क्यों हंसती है हमे , और क्यों रुलाती है !!
ये तो गुरु है, जो हमेशा जीवन का पाठ पढ़ाती है !
और यूं ही , लम्हा लम्हा जी कर , चली जाती है !!
अब तो क्या आपसे : पी के ''तनहा''
कुछ अपनी कहती है,और कुछ मेरी सुनकर , मुझसे बतियाती है !!
मैं पूछ बैठता हूँ , उससे की, क्यों हो तुम ऐसी .....
मेरे इस सवाल से , वो सोच में पड़ जाती है !!
और बहुत सोचने के बाद , मुझसे कहती है !
की आओ तुम्हे बताती हूँ , की जिंदगी कैसे जी जाती है !!
और फिर अतीत की कोठरी में ले जाकर ....
मेरे बीते पलो को याद दिलाती है !!
इन सबको क्यों भूल जाता है इन्सान ...
ये कह कह कर मुझे रुलाती है !
तब समझ आया , की जिंदगी पल पल क्यों आजमाती है !
क्यों हंसती है हमे , और क्यों रुलाती है !!
ये तो गुरु है, जो हमेशा जीवन का पाठ पढ़ाती है !
और यूं ही , लम्हा लम्हा जी कर , चली जाती है !!
अब तो क्या आपसे : पी के ''तनहा''
Friday, 1 March 2013
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है...
बहारों के मौसम में , अक्सर जब याद तेरी आ जाती है !
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है...
बहारों के मौसम में , अक्सर जब याद तेरी आ जाती है !
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है...
बहारों के मौसम में , अक्सर जब याद तेरी आ जाती है !
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
गुजरे पलो के एहसासों में,फिर आँख मेरी भर आती है !!
तेरी वफा के किस्सों को, जब लिखता हूँ मैं पन्नो पर !
मेरे इन शब्दों की माला, फिर ''गीत ओ ग़ज़ल'' बन जाती है !!
पी के ''तनहा''
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