और अब प्रस्तुत है मदर डे के लिए कविता
बहुत दिन से सोच रहा था की माँ के बारे में कुछ लिखू ........
सोचा ....आज लिख ही दूं
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तेरे घर के आगे जो निकला था कारवां
उसमे ये सामिल था तेरा ये नौजवां
कितनी ही बार मुझको ,पड़ा मुस्किलो से लड़ना
उस वक़्त तेरी दुआओं ने दिखाया कमाल
जिसने कभी न हारने दिया तेरा लाल
अब क्या करे , जब चारो तरफ है खिजां
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
तुने ही कहा था की जा मेरा नाम रोशन करना
उसके लिए न जाने कितनी बार पड़ा मुझको मरना
लेकिन मेरे पास है आज भी तेरा निशां
सोचता हूँ बड़े इत्मिनान से जब माँ
की तेरे ही साए में निकले मेरी जां
आपका आभारी : पी के शर्मा
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पी के ''तनहा''