Pages

Tuesday 3 May 2011

क्यों अपने पी के को रुलाया आपने.........

जिंदगी ऐ संघर्ष से जब मैं लगा था  कापने 
तब उस दौर ऐ जिंदगी में साथ थामा था मेरा आपने 
वो दिन जब मैं अपने आप पर रोता था 
मुझे याद है उन दिनों मुझे हसाया था आपने 
मुझे गुनाह करने से बचा तो लिया ( क्योंकि मैं आत्मदाह का प्रयाश कर रहा था )
मगर फिर गुनाह करने पर मजबूर किया आपने 
मैंने तो हार मान ली थी जिंदगी से 
मगर क्यों फिर मुझको जीना सिखाया आपने 
यूँ तो हम फिरते थे किस्मत के मारो की तरह 
लेकिन मुक्क़दर का सिकंदर हमको बनाया आपने 
और अब जो आ गया है जिंदगी का आखिरी पड़ाव 
अब तो शरीर भी लगा है मेरा हाफ़ने........
अब तो निभा जाओ वो वादा, वो कसमे 
जो कभी अनजाने में हमसे किये  थे  आपने 
सोचता हूँ अब मैं मेरे हमसफ़र 
क्यों मुझे जिंदगी देकर सताया आपने 
इतने गुनहाओ के बाद ,जिंदगी से जाकर 
क्यों अपने पी के को रुलाया आपने......... 

No comments:

Post a Comment

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''