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Saturday, 12 May 2012

मन ही मन , मन को समझाना पड़ता है..........

कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!

अक्सर इतना तनहा हो जाता हूँ मैं !
चुप रह कर भी, सब कुछ कह जाता हूँ मैं !!
तकदीरे जब साथ नहीं देती मेरा !
मन ही मन , मन को समझाना पड़ता है !!

कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!

अक्सर मुझको देखकर , वो शर्मा जाते है !
आँखों से होकर , जब हम दिल तक जाते है !!
अवगत है वो , मेरी इस नादानी से भी !
पर फिर , भी उनको ये बतलाना पड़ता है !!

कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!

1 comment:

  1. बहुत प्रभावित करती रचना .....
    आपकी रचना जितनी बार पढिए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।

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पी के ''तनहा''