कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
अक्सर इतना तनहा हो जाता हूँ मैं !
चुप रह कर भी, सब कुछ कह जाता हूँ मैं !!
तकदीरे जब साथ नहीं देती मेरा !
मन ही मन , मन को समझाना पड़ता है !!
कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
अक्सर मुझको देखकर , वो शर्मा जाते है !
आँखों से होकर , जब हम दिल तक जाते है !!
अवगत है वो , मेरी इस नादानी से भी !
पर फिर , भी उनको ये बतलाना पड़ता है !!
कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
अक्सर इतना तनहा हो जाता हूँ मैं !
चुप रह कर भी, सब कुछ कह जाता हूँ मैं !!
तकदीरे जब साथ नहीं देती मेरा !
मन ही मन , मन को समझाना पड़ता है !!
कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
अक्सर मुझको देखकर , वो शर्मा जाते है !
आँखों से होकर , जब हम दिल तक जाते है !!
अवगत है वो , मेरी इस नादानी से भी !
पर फिर , भी उनको ये बतलाना पड़ता है !!
कभी कभी कुछ यूं , कर जाना पड़ता है !
रोते रोते भी , हंस जाना पड़ता है !!
बहुत प्रभावित करती रचना .....
ReplyDeleteआपकी रचना जितनी बार पढिए, लगता है पहली बार पढ रहा हूं।