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Friday, 13 July 2012

यही सोच सोच के, हूँ परेशाँ.....

मुझको नहीं मालूम की  ........
ये मन कबसे बेगाना है !
मुझे उनकी सब खबर है लेकिन ..
वो कहते मुझे, अनजाना है !!
 
अब कहें जो , सो वो कहती रहे !
मुझको इसकी परवाह नहीं !!
वो प्यार करें या ना करें !
ये मन उनका , दीवाना है !!
 
मुझे उनकी सब खबर है लेकिन ..
वो कहते मुझे, अनजाना है !!
 
है कुछ भी नहीं , मगर फिर भी .......
मुझको एक विश्वास है..........
जो मिलके भी , मिल पता नहीं ........
होता वही क्यों खास है ...
यही सोच सोच के, हूँ परेशाँ.....
 वो अपना है , या बेगाना है ....
 
मुझे उनकी सब खबर है लेकिन ..
वो कहते मुझे, अनजाना है !!
 
 

2 comments:

  1. अजीब उलझन है शायद वो आपके साथ झेडखानी
    कर रही हो ..है ना....
    बहूत, बहूत सुंदर रचना...

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  2. बहुत अच्छी रचना......
    सुन्दर भाव.

    अनु

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आपका अपना
पी के ''तनहा''