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Tuesday 11 October 2011

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया, जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया


तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

वो भी दिन थे , कभी मैकदे में 
हमारी शामे रंगीन हुआ करती थी 
झलकाया करती थी तुम जाम दर जाम 
फिर खाली आज क्यों ये जाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

याद है मुझको आज भी ,वो 
काली सुबह, वो भयानक तूफ़ान 
मगर वो भी इस पी के को हरा नही पाया  
मगर तुमने आज मेरा काम तमाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया 

मैं ऐसा था नहीं पहले , मुझे तुमने है बदला 
नहीं सोचा था मैंने , होगा ये भी कभी 
नहीं लिखा मैंने ता-उम्र कुछ भी , 
मगर आज तुमने लिखने का मेरे इंतजाम कर दिया 

तुमने ये ऐलान सरेआम कर दिया
जज्बात को मेरे नीलाम कर दिया  

3 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति.....

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  2. aah... wat I say
    lovely n equally painful !!

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  3. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

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पी के ''तनहा''