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Thursday, 20 February 2014

क्या पता था, ये हसरत, फिर से उमड़ यूँ आएगी ....

मेरे बाद ये ख़ामोशी, तुमको मेरे गीत सुनाएगी !
मेरे शब्दो की गहराई , फिर तुमको रुलाएगी !!

लाख भुलाना चाहोगे तुम, अपने दिल से मुझको !
रह- रह कर मगर तुमको, मेरी याद आएगी !!

मैं ख्वाहिशो को, दफना कर निकला था घर से !
क्या पता था, ये हसरत, फिर से उमड़ यूँ आएगी !!

तुम आये थे ज़िंदगी में, बड़ी हसीन थी ज़िंदगी !
हमको खबर नही थी, कि इसे यूँ नजर लग जायेगी !!

आना- जाना लगा रहता है, दुनिया के इस मेले में !
अपनी दुनिया का भी क्या है, चंद दिनों में सिमट जायेगी !!


पी के ''तनहा''

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पी के ''तनहा''