Pages

Wednesday 19 February 2014

दो पल ठहर भी जाओ, ज़िंदगी में मेरी......

किसी शाम फिर से आओ, ज़िंदगी में मेरी !
कि आकर, फिर ना जाओ ज़िंदगी से मेरी !!
कह दो वक़्त से, किसी रोज़ ''मेरे हमसफ़र'' !
कि दो पल ठहर भी जाओ, ज़िंदगी में मेरी !!

मैं ''तनहा'' सा हो गया हूँ, बिन तेरे ए ज़िंदगी !
कभी यूँ कर, कि आकर मिल मुझसे ज़िंदगी !!
पल पल रुलाया तूने, मगर कुछ ना कहा मैंने !
ना कोई शिकवा, ना शिकायत है, तुझसे ज़िंदगी !!

पी के ''तनहा''

No comments:

Post a Comment

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''