ये आँखें नम पिछली शाम से है
वो गए थे मुझे जब भी तनहा छोड़कर
मेरे विश्वास को, मेरे वादों को तोड़कर
जिनका जिक्र भी छुपाते थे सबसे
वो ही आज सरेआम से है
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है
ये आँखें नम पिछली शाम से है
मुझे याद है आज भी वो दिन
जिया था मैं जिसपल उसके बिन
यूं तो मना किया था उन्होंने पीने से
मगर आज हाथों में फिर जाम से है
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है
ये आँखें नम पिछली शाम से है
और आज जब रुकने लगी साँस
मन कहने लगा होकर उदास
लो करदो मेरा क़त्ल ए आम
मुझे अब लगाव नहीं इस जान से है
वो रास्ते आज फिर सुनसान से है
ये आँखें नम पिछली शाम से है
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पी के ''तनहा''