Pages

Tuesday, 30 August 2011

सोचता हूँ आज कह दूं .......................

सोचता हूँ आज कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
उनकी मुस्कान आज कुछ अलग है 
उनका मिजाज भी शायद आज बदला है 
सोचता हूँ आज तो कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
यूँ ही सोचते सोचते कहीं वो चले ना जाये 
कल का क्या पता वो आये या ना आये 
सोचता हूँ आज कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 
मगर यूँ ही सोचते सोचते शाम हो चली 
और शाम होते ही वो भी घर को चली 
दिल के जज्बात दिल में रह गए 
कहना था कुछ और उनसे 
और हम कुछ और कह गए 
सोचता तो आज भी हूँ 
की मैंने इतना क्यों सोचा 
की सोचने सोचने में शाम हो गयी 
और बिना कुछ कहे ही 
मेरे इश्क की चर्चा सरे आम हो गयी 
अब मैं इस घटना को क्या नाम दूं 
सोचता हूँ आज भी कह दूं 
दिल की बात जुबां पे ला दूं 

1 comment:

  1. sharma ji... aap bahut achcha likhte hain
    par meri ek salaah hai aapko ki aap apni kavitaaon me punctuation marks (means comma, full stop etc) bhi lagaayen taki aapki kavita ko padhne me aur bhi mazaa aaye...

    tatha har antare ke baad space bhi den...

    ReplyDelete

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''