मेरे ख्वाबो को देखो यारो , कैसी ये सौगात मिली !
माँगा था रोशन जहाँ , मुझको अंधियारी रात मिली !!
ये पागल मन भी देखो , यूं बन बैठा दीवाना !
लाख समझाने पर भी , ये मेरी एक ना माना !!
कसूर नहीं था उसका भी , इलज़ाम क्यों मैं उसको दूँ !
अब वादे, यादे पास नहीं ,उस तूफां का हिसाब किसको दूँ !!
अब मिलना जुलना , भी देखो कैसा है दुशवार हुआ !
इश्क हुआ था तब मुझको , क्यों अब तक ना इज़हार हुआ !!
यूं देख देख कर ही तुमको , मन की बैचनी बढती थी !
शायद तुम भी सोच कर मुझको, एक ख्वाब नया सा घढती थी !!
पर मंजिल हम प्यार की चढ़ ना सके !
वो सपने भी सच हो ना सके !!
हमारे प्यार का दुश्मन , ये सारा संसार हुआ !
जिधर को निकला मैं , उधर न्यारी ही बात मिली !!
मेरे ख्वाबो को देखो यारो , कैसी ये सौगात मिली !
माँगा था रोशन जहाँ , मुझको अंधियारी रात मिली !!
वाह शर्मा जी
ReplyDelete.....बहुत बेहतरीन
मुर्ख - दिवस की बधाई
आप को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...
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