यूं ही चला आ रहा हूँ कबसे जिंदगी को जीतता हारता, तलाश है मंजिल की डगर की ,तलाश है मेरे हमसफ़र की ....
सभी ख्वाब पुरे नहीं न होते दोस्त..सुन्दर मुक्तक..:-)
बहुत बढ़िया,
आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,आपका अपना पी के ''तनहा''
सभी ख्वाब पुरे नहीं न होते दोस्त..
ReplyDeleteसुन्दर मुक्तक..
:-)
बहुत बढ़िया,
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