तुमको सुना रहा हूँ एक गाँव की कहानी
सूरत से आप जैसे इन्सान की कहानी
बस्ती से थोडा हटके एक झोपडी खड़ी थी
भादो की रात काली ले मोर्चा अड़ी थी
सैलाब आ गया था बारिश घनी हुई थी
हर बार की तरह ये कुछ बात न नई थी
बच्चा था उम्र १० थी चेचक निकल रही थी
सोले फफोले टाँके सब देह जल रही थी
दमड़ी न पास में थी न पास में था जेवर
कोई उधार क्यों दे इन्सान खुश्क बेजर
माँ बाप दोनों रातों करवट बदल रहे थे
बच्चे को देख कर आंसू निकल रहे थे
लो बाप उठ के बैठा कोई सवाल लेकर
या बेबसी का आलम कोई जमाल लेकर
सोचा अपने आप को ही कोई सजा दूं
अब मैं अपने लाल को क्या दवा दूं
इन सब से अच्छा है इसका गला दबा दूं
चेचक से मर गया था यह गाँव में हवा दूं
बेटे के पास जाकर जैसे गला दबाया
आवाज़ पर न निकली और कंठ भर के आया
ममता आ कर बोली कैसा ये बाप है तू
किस जनम का बैरी है , सांप है तू
अब तुम ही बताओ यारो किसकी खता बताओ
सामिल है अहले भगवान, किसको सजा सुनाओ
एक अनुरोध :-इस मंच पर आने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, बस जाने से पहले एक गुजारिश है साहब की- 'कुछ तो कहते जाइये जो याद आप हमको भी रहें, अच्छा नहीं तो बुरा सही पर कुछ तो लिखते जाइये
ankho may ansu aa gaye apki kavita padh kar...sach likha hai apne
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