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Tuesday, 23 April 2013

जिसकी बारात दरवाजे से वापिस चली जाती

हाँ, जानता हूँ !
जायज है उनका नाराज होना ....आखिर बड़े जीजा जी है वो मेरे ..लेकिन उनको खुश रखने के लिए ..मैं वो सब कैसे कर सकता था जो वो चाहते थे ! की छोटी बहन की सगाई वापिस ले आऊ ! मैं अपनी चोखट पर बारात ना आने दूं !
क्या गुजरती मेरी बूढी माँ ...जिसने दर्द ही दर्द में जिंदगी को जिया है !
क्या गुजरती दिल के मरीज पिता पर ... जिसकी जिंदगी दुखो की भेंट चढ़ गयी !
क्या गुजरती उस बहन पर जिसकी बारात दरवाजे से वापिस चली जाती !
क्या गुजरती उस भाई पर ...जो सबसे छोटा था ! एकलौता था ! तमाम जिम्मेदारिया थी उसके नन्हे कंधो पर !
मैं नहीं कर सकता था वो सब ....अब रूठना है तो कोई रूठे !
मुझको फर्क नहीं पड़ता ....मैं एक शख्स की खुसी के लिए इतना सब नहीं कर सकता ....
मगर फिर भी ....एक टीस सी उभरती है मन में ...की आखिर वो बड़े जीजा है ....

पी के ''तनहा''

1 comment:

  1. जो अपने होते हैं
    वे ना-समझ नहीं होते हैं

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पी के ''तनहा''