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Monday, 4 April 2016

तुम आओगे, सोच के बैठे है इंतज़ार में तुम्हारे......

तेरी यादों का मौसम, जब अनायस लौट आता है !
ये मन, तुझसे मिलने को बहुत ही छटपटाता है !!

बहुत बैचेन होता हूँ, कहीं दिल लगता नहीं मेरा !
कोई लम्हा नहीं जाता, इंतज़ार करते हुए तेरा !!

मेरी हर कविता का, अब बस सार ही तुम हो !
ना जाने मगर, कैसी गलतफहमी में तुम गुम हो !!

मिला जिस रोज़ मैं तुमसे, गर वो लम्हा नहीं होता !
मैं भी आज खुद ही में, ऐसे ''तनहा'' नहीं होता !!

ना जाने कौन सा ऐसा, गुनाह मुझसे है हो गया !
बातो ही बातो में, तू मुझसे कुछ ऐसा खो गया !!

काश जाने से पहले तू, मुझे एक बार बता देता !
मैं, खुद को, खुद के जुर्म की, सजा तो दे लेता !!

अब ज़िंदगी जीने के, बस बाकी यही है सहारे !
तुम आओगे, सोच के बैठे है इंतज़ार में तुम्हारे !!


पी के ''तनहा''

1 comment:

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पी के ''तनहा''