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Sunday, 9 January 2011

.पथिक..................................

है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।
न कोई आस है न कोई पास है।
न मंजिल के मिलने की आस है।।
है घनघोर अंधेरा मगर
वह पथिक चला जा रहा है।।

पसीने से लतपथ है काया
भूख ने छीन लिया है अपना साया।
कर्म वो अपना किए जा रहा है।
वह पथिक है चला जा रहा है।।

जो भी मिलता है इस रास्ते में।
वो करता है उडने की बातें।
और दिखाता है सपनों की दुनिया।
पर हकीकत तो इससे परे है।
बस रास्ता ही संग चला जा रहा है।
कर्म वह अपना किए जा रहा है
वह पथिक है इसलिए चला जा रहा है।

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पी के ''तनहा''