Pages

Friday, 28 January 2011

दिन गुज़र गए वो मस्ताने, पर याद अभी तक बाकी है...!!!

इक खाब सुहाना टूट गया, एक ज़ख्म अभी तक बाकी है,
जो अरमा थे सब ख़ाक हुए, बस राख अभी तक बाकी है,

जब उड़ते थे परवाज़ थी, सूरज को छूने निकले थे,
सब पंख हमारे झुलस गए, पर चाह अभी तक बाकी है,

पर्वत से अक्खड़ रहते थे, तूफानों से भीड़ जाते थे,
तिनको के जैसी बिखर गए, पर ताव अभी तक बाकी है,

लहरों से बहते थे हरदम, दीवाने थे मतवाले थे,
दिन गुज़र गए वो मस्ताने, पर याद अभी तक बाकी है...!!!

No comments:

Post a Comment

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''