कुछ इस तरह से जिंदगी सताती रही मुझे।
हर लम्हा मारकर भी जिलाती रही मुझे।।
गफलत में न पड जाउं कभी किसी गुमान में।
हर रोज एक बार वो आइना दिखाती रही मुझे।।
इस डर से कि कभी दूर न हो जाउं उससे मैं।
रह रह के बार बार वो बुलाती रही मुझे।।
संजीदगी मेरे चेहरे पे नागवार थी उसको।
चेहरा बदल बदल कर वो हंसाती रही मुझे।।
हर रंग दुनियादारी का देख रखा था उसने।
इसलिए अपने आंचल में वो छुपाती रही मुझे।।
कुछ इस तरह से जिंदगी सताती रही मुझे।
हर लम्हा मारकर भी जिलाती रही मुझे।।
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पी के ''तनहा''