मुकद्दर के सितारों पर,
ज़माने के इशारों पर,
उदासी के किनारों पर,
कभी वीरान शहरों में,
कभी सुनसान राहों पर,
कभी हैरान आखों में,
कभी बेजान लम्हों में,
तुम्हारी याद चुपके से,
कोई सरगोशी करती है,
यह पलकें भीग जाती हैं,
दो आंसू टूट गिरते हैं,
मैं पलकों को झुकाता हूँ,
बज़ाहिर मुस्कुराता हूँ,
फक़त इतना कह पाता हूँ,
मुझे कितना सताते हो,
मुझे तुम याद आते हो...!!!
ज़माने के इशारों पर,
उदासी के किनारों पर,
कभी वीरान शहरों में,
कभी सुनसान राहों पर,
कभी हैरान आखों में,
कभी बेजान लम्हों में,
तुम्हारी याद चुपके से,
कोई सरगोशी करती है,
यह पलकें भीग जाती हैं,
दो आंसू टूट गिरते हैं,
मैं पलकों को झुकाता हूँ,
बज़ाहिर मुस्कुराता हूँ,
फक़त इतना कह पाता हूँ,
मुझे कितना सताते हो,
मुझे तुम याद आते हो...!!!
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पी के ''तनहा''