फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।
और आके फिर ना जाना तुम ।
मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।
अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।
बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।
नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।
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पी के ''तनहा''