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Tuesday, 1 February 2011

बन फूल वहीं बस जाना तुम ।

फुरसत से घर में आना तुम
और आके फिर ना जाना तुम ।

मन तितली बनकर डोल रहा
बन फूल वहीं बस जाना तुम ।

अधरों में अब है प्यास जगी
बनके झरना बह जाना तुम ।

बेरंग हुए इन हाथों में
बनके मेंहदी रच जाना तुम ।

नैनों में है जो सूनापन
बन के काज़ल सज जाना तुम।

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पी के ''तनहा''