Pages

Tuesday 1 February 2011

अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...

प्यार जब जिस्म की चीखों में दफ़न हो जाये ,
ओढ़नी इस तरह उलझे कि कफ़न हो जाये ,

घर के एहसास जब बाजार की शर्तो में ढले ,
अजनबी लोग जब हमराह बन के साथ चले ,

लबों से आसमां तक सबकी दुआ चुक जाये ,
भीड़ का शोर जब कानो के पास रुक जाये ,

सितम की मारी हुई वक्त की इन आँखों में ,
नमी हो लाख मगर फिर भी मुस्कुराएंगे ,

अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...

लोग कहते रहें इस रात की सुबह ही नहीं ,
कह दे सूरज कि रौशनी का तजुर्बा ही नहीं ,

वो लडाई को भले आर पार ले जाएँ ,
लोहा ले जाएँ वो लोहे की धार ले जाएँ ,
जिसकी चोखट से तराजू तक हो उन पर गिरवी
उस अदालत में हमें बार बार ले जाएँ

हम अगर गुनगुना भी देंगे तो वो सब के सब
हम को कागज पे हरा के भी हार जायेंगे
अँधेरे वक्त में भी गीत गाये जायेंगे...

No comments:

Post a Comment

आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''