तुम पर कुछ लिखने की खातिर
जब जब मैंने कलम उठाई
आई याद तुम्हारी मुझको
और आँख भी मेरी भर आई
मैंने तुमको कितना चाहा
और पल पल मैंने वफा निभाई
तुम पर कुछ लिखने की खातिर
जब जब मैंने कलम उठाई
सोचा तू मुझको समझेगी
किस्मत मेरी भी चमकेगी
पर तुने मुझको न पहचाना
भरी महफ़िल में की रुसवाई
तुम पर कुछ लिखने की खातिर
जब जब मैंने कलम उठाई
तेरे लिए सपने भी टूटे
तेरे लिए अपने भी छूटे
सोचा था बजेगी एक दिन
मेरे घर भी सहनाई
तुम पर कुछ लिखने की खातिर
जब जब मैंने कलम उठाई
दुनिया से मैं जाऊंगा जिसदिन
पल पल याद आऊंगा उस दिन
हर पल तेरे साथ रहेगी
बस मेरी ही परछाई
तुम पर कुछ लिखने की खातिर
जब जब मैंने कलम उठाई
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पी के ''तनहा''