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Thursday, 15 December 2011

हारा नहीं था मैं , था आज कुछ थका हुआ...


हारा नहीं था मैं , था आज कुछ थका हुआ 
जिंदगी में मेरी,  आज कुछ ऐसा हुआ ....

की इस कद्र चल रहा था , मंजिल ए डगर पर 
फिरता है , जैसे कोई प्यार का मारा हुआ ..
जीत कर भी मुझे लग रहा था ऐसा 
जीत कर भी जैसे कोई इन्सां हो हारा हुआ 

मगर .......
हारा नहीं था मैं , था आज कुछ थका हुआ...

प्यार की मंजिल को , आखिर पा ही लिया मैंने 
अंजाम को देखा तो सोचा , ये क्या किया मैंने 
वर्षो की तम्मना , पूरी हुई थी मेरी ......
सपना पूरा हुआ ,जैसे कोई रुका हुआ ...

हारा नहीं था मैं , था आज कुछ थका हुआ...




2 comments:

  1. दिल के सुंदर एहसास
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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आपका अपना
पी के ''तनहा''