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Wednesday 4 April 2012

समझ गया मैं तेरी उदासी को..............

जिंदगी ,,,,, हाँ
जिंदगी ही तो है ..........
मगर आज ना जाने क्यों कुछ उदासी है इसमें.
आखिर ऐसा क्या हुआ इसके साथ ....
ये तो कभी ऐसी नही रहती थी......
हर  पल चेह्चाहती रहती ........
रोते हुए को भी हंसा देती.......
मगर आज चेहरे पर क्यों सूनापन है .....
क्यों आज इसके लब खामोश है ......
कहीं कोई रूठा तो नहीं है .......
कोई ख्वाब टुटा तो नहीं है ........
लेकिन मैं तो बहुत करीबी दोस्त हूँ इसका ......
इसने कभी हार नहीं मानी......
बड़ी से बड़ी मुश्किल इसे डिगा नहीं पाई ...
फिर आज ये ख़ामोशी .......क्या राज़  हो सकता है ......
सुनो तुम........
मुझसे नहीं बताओगी.........
इस हँसते हुए चेहरे पर उदासी अच्छी नहीं लगती.....
हंसो ना ......
जिंदगी (रोते हुए )........
अब कैसे हंसू ......किसकी खातिर हंसू ........
अब कोई मुझे खुसी से नही जीता ......
एक बार समझने लायक हुए ,,,,,,की इस पैसे के लिए ...
मुझको कमाने लग जाते है ......
और पैसे की इस अंधी दोड़ में , मुझको ही नहीं , अपने अपनों को भूल जाते है .....
कैसा रहता है वो बचपन .........वो कहानी ......वो किस्से ......
जवानी में आते ही सब झूठे सिद्ध हो जाते है ..........
सब इस बेरन जवानी पर इठलाते है ......
मगर अंत में कुछ हाथ नहीं आता ,,,,,,,,,
मनुष्य खाली हाथ ही ... लौट जाता है
सिर्फ खाली ............
मैं बोला .........बस समझ गया मैं तेरी उदासी को..............
तेरी रूह प्यार की प्यासी को ..........
 
अगर कुछ गलत लिख दिया गया हो तो ,,,,,,माफ़ी चाहते है

4 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. समझ गया मैं तेरी उदासी को..............
    बहुत सुंदर लिखा है आपने।

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  3. अच्‍छे शब्‍द संयोजन के साथ सशक्‍त अभिव्‍यक्ति।

    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  4. बहुत ही सुन्दर भाव मई प्रस्तुति....

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पी के ''तनहा''