इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
याद आता है वो पल आज भी
डूबी थी कश्ती मेरी जिस दिन
थामा तो हाथ बहुतो ने था मेरा
मगर फिर भी किनारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
माना उस तूफ़ान में लाखों बेघर हुए थे
फिर कुछ आये भी थे सांत्वना देने के लिए
जिंदगी तो मिल मुझे भी मिल जाती ........
मगर क्या करू साथ जब तुम्हारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
तुम्हारी इस बेरुखी को मैं क्या नाम देता
अपने साये को क्यों मैं बदनाम कर देता
मुझे अफ़सोस है आज भी इस बात का
वो ख़त आपको हमारा नहीं मिला
इस डूबी हुई कश्ती को सहारा नहीं मिला
अपने तो बहुत मिले ,कोई हमारा नहीं मिला
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पी के ''तनहा''