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Saturday, 3 September 2011

इस कविता को अब मैं क्या नाम दूं ......

चला चल मैं यू ही चला जा रहा था 
अतीत पर अपने मैं पछता रहा था 
चला जा रहा था मैं मंजिल को पाने 
कुछ रूठे हुए अपनों को मनाने.........
अचानक ही झटका दिया जिंदगी ने 
जमी पर पटका दिया जिंदगी ने 
मैं हैरान था , कुछ परेशान था 
फिर मैंने वहां कुछ था ऐसा देखा 
सवारने लगी मेरे हाथो की रेखा 
निकला था मैं जिस मंजिल को पाने 
लगी वो धीरे धीरे मेरे पास आने 
फिर मुझको एक आवाज़ आई 
चारो तरफ से दी जो सुनाई
वो आवाजे कुछ यूं बताती है 
की पतझड़ के बाद ,बहारे आती है 
 लगे जब भी ह्रदय तुम्हारा घबराना 
तुम सीधे चले मेरे पास आना 
पता है तुमको ,हूँ मैं गरीब 
पर जैसा भी हूँ , हूँ तुम्हारा नसीब 
इस कविता को अब मैं क्या नाम दूं 
सोचता हूँ , कलम को यहीं विराम दूं. 


8 comments:

  1. सुंदर कविता।

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  2. सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!

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  3. वो आवाजे कुछ यूं बताती है
    की पतझड़ के बाद ,बहारे आती है
    बहुत sundar bhavon se saji कविता .

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  4. बहुत ही सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना !

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  5. बहुत सुंदर कविता।...

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पी के ''तनहा''