एक बात सुनोगे गर
सुन सको तो कह लूँ
ज़ख्म जो तुने दिए बता उनको कैसे सह लूँ
आँखों में देख जरा तू
अश्क अश्क ही है इनमे
है जिंदगी मेरी तुझसे
तेरे बिन कैसे रह लूँ
ये अश्क जो अब हो चले है
समुन्दर से भी गहरे
सोचता हों अब मैं भी
साथ इनके ही बह लूँ
अब तन्हाई भी साथ नहीं देती
काश .. तुम एक बार हंस देती
कहना चाहता हूँ आज भी .. वो ही
रुकोगे एक पल जरा
सूनने को दास्ताँ ..इस दीवाने की
गर सुन सको तो कह लूँ
No comments:
Post a Comment
आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं सादर आमंत्रित है ! आपकी आलोचना की हमे आवश्यकता है,
आपका अपना
पी के ''तनहा''