मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..मानता हूँ मैं ,हुई है मुझसे खता
मेरी खता की ,इतनी बड़ी न दो सजा
मांग रहा हूँ माफ़ी कब से .....
अब कर भी तुम माफ़ तो दो
मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..तुमसे दूर होकर ,हम सोना ही भूल गए
और मिले जब बिछड़ कर तुमसे
रोना तो चाहा,मगर रोना ही भूल गए
अब इस मिलने की ख़ुशी में ...
हाथों में मेरे तुम जाम तो दो ...
मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..कब से निहार रहा हूँ तुझको मेरे हमसफर
चल चले हम दोनों ,प्यार की डगर
वो कब से छुपा कर बैठे हो
अब खोल भी वो तुम राज़ तो दो
मैं सुना रहा हूँ तुमको कब से
मेरी कविताओ पर तुम दाद तो दो ..
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पी के ''तनहा''