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Wednesday, 1 February 2012

उसे पढकर शायद आ जाये , आपको भी रोना..

आज २१ वर्षो बाद , मैंने जिंदगी को है जाना !
कितने होते है रूप इसके , आज है पहचाना !!
 
इन बीते वर्षो में , ना जाने क्या क्या हुआ !
कहीं लगी थी आग, तो था कहीं धुआं धुआं !!
यूँ तो दर्द ओ गम , साथी बन चुके थे मेरे !
मगर अभी भी कुछ बाकि था , साथ मेरे होना !!
 
आज २१ वर्षो बाद , मैंने जिंदगी को है जाना !
कितने होते है रूप इसके , आज है पहचाना !!
 
इस जिंदगी में , लोग मिलते गये ,बिछड़ते गये !
कुछ हो गये पुराने , कुछ बन गये नये !!
वो जो लिखी थी ग़ज़ल , इस जिंदगी को जीकर !
उसे पढकर शायद आ जाये , आपको भी रोना !
 
आज २१ वर्षो बाद , मैंने जिंदगी को है जाना !
कितने होते है रूप इसके , आज है पहचाना !! 
 
ये क्या , अभी ही भर आई आपकी आँखें !
मत रो , अभी चल रही है मेरी सांसे !!
इल्त्जां यही है , मेरी आप सबसे !
मेरे बाद मेरी , कविताओ को सुनाना !!
 
आज २१ वर्षो बाद , मैंने जिंदगी को है जाना !
कितने होते है रूप इसके , आज है पहचाना !!
 
 

1 comment:

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आपका अपना
पी के ''तनहा''