शायद तुम मिल जाओ मुझे यहाँ वहां !!
वो रास्ते , वो डगर वहीँ है आज भी !
पहली बार तुमको मैंने देखा था जहाँ !!
वो चौराहे भी , पहचान जाते है मुझको !
तेरे दीदार को रहता था , जहाँ मैं खड़ा !!
तुम्हारी चाह में भटका मैं , जाने कहाँ कहाँ !
शायद तुम मिल जाओ मुझे यहाँ वहां !!
वक़्त बदल गया है , मगर कभी देखना !
की तुम धडकती हो मेरी धडकनों में !!
गर हो सके तो , बचा लेना मुझको !
मर जाऊंगा तुझ बिन , तू है मेरी जां !!
तुम्हारी चाह में भटका मैं , जाने कहाँ कहाँ !
शायद तुम मिल जाओ मुझे यहाँ वहां !!
याद करता हूँ तुझे जब , कलम हाथ आ जाती है !
मुझे खबर नहीं होती , ये बस चलती जाती है !!
रूकती है तो देखता हूँ , एक ग़ज़ल बन जाती है !
आना कभी , तो शायद तेरे आने से बंध जाये ये शमां !!
तुम्हारी चाह में भटका मैं , जाने कहाँ कहाँ !
शायद तुम मिल जाओ मुझे यहाँ वहां !!
मुझे अक्सर , एहसास होता है ऐसा !
की तुम भी मुझे याद करते हो !!
गर हो सके तो मिलना इसी जन्म में !
मैं ताउम्र इंतज़ार करूँगा, मेरी प्रियतमा !!
तुम्हारी चाह में भटका मैं , जाने कहाँ कहाँ !
शायद तुम मिल जाओ मुझे यहाँ वहां !!
बेहतरीन भाव....सराहनीय रचना...बधाई.....
ReplyDeleteनेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)
अच्छे भाव ..
ReplyDeleteअच्छी अभिव्यक्ति..
वाह
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ,बेहतरीन रचना है...
लाजवाब...
कविता की प्रत्येक पंक्ति में अत्यंत सुंदर भाव हैं.....आपकी कविताएं मन को छूने में कामयाब रहती हैं | शुभकामनाएं |
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